वर्षा समीर
- हरिवंश राय बच्चन (सतरंगिनी से)
बरसात की आती हवा।
वर्षा-धुले आकाश से,
या चन्द्रमा के पास से,
या बादलों की साँस से;
मधु-सिक्त, मदमाती हवा,
बरसात की आती हवा।
यह खेलती है ढाल से,
ऊँचे शिखर के भाल से,
आकाश से, पाताल से,
झकझोर-लहराती हवा;
बरसात की आती हवा।
यह खेलती है सर-वारि से,
नद-निर्झरों की धार से,
इस पार से, उस पार से,
झुक-झूम बल खाती हवा;
बरसात की आती हवा।
यह खेलती तरुमाल से,
यह खेलती हर डाल से,
लोनी लता के जाल से,
अठखेल-इठलाती हवा;
बरसात की आती हवा।
इसकी सहेली है पिकी,
इसकी सहेली चातकी,
संगिन शिखिन, संगी शिखी,
यह नाचती-गाती हवा;
बरसात की आती हवा।
रँगती कभी यह इन्द्रधनु,
रँगती कभी यह चन्द्रधनु,
अब पीत घन, अब रक्त घन,
रँगरेल-रँगराती हवा;
बरसात की आती हवा।
यह गुदगुदाती देह को,
शीतल बनती गेह को,
फिर से जगाती नेह को;
उल्लास बरसाती हवा;
बरसात की आती हवा।
यह शून्य से होकर प्रकट,
नव हर्ष से आगे झपट;
हर अंग से जाती लिपट,
आनंद सरसाती हवा;
बरसात की आती हवा।
जब ग्रीष्म में ये जल चुकी,
जब खा अंगार-अनल चुकी,
जब आग में यह पल चुकी,
वरदान यह पाती हवा;
बरसात की आती हवा।
तू भी विरह में दह चुका ,
तू भी दुखों को सह चुका,
दुःख की कहानी कह चुका,
मुझसे बता जाती हवा;
बरसात की आती हवा।
I had read this poem long time back in school, but it used to be titled 'Barsaat ki aati hawa' (or at least that is what I remember). I had been searching for this poem far and wide, for years and years. After several years, I came to know that this is from the collection 'Satrangini'. But still could not find it in the online poetry sites, though they had some other poems from this collection. At last, I managed to locate a copy in the library, though in another branch; and after waiting in anticipation for several days, I was finally able to savor this lovely poem again :).
1 comment:
मधु सिक्त का क्या अर्थ हैं
Post a Comment